Monday, October 14, 2019

बच्चों में सृजनात्मकता को कैसे प्रोत्साहित करें

अभी की दुनिया आपाधापी की दुनिया है | हर माता- पिता अपने बच्चों को करियर पर फोकस करने को, प्राथमिकता देने को कहते है |  ऐसे में बच्चों की स्वतंत्र विचार शक्ति और रचनात्मकता पर बुरा असर पड़ता है |
इन दोनों बातों के बीच में संतुलन बनाने की जरुरत है |

समाज भी सृजनात्मकता की कुछ ही विधाओं को सम्मान और मान्यता देता है  जैसे गायन, लेखन, चित्रकारी, संगीत, नृत्य, दर्शन इत्यादि | इसका यह मतलब नहीं की आप भी अपने बच्चों को सृजन के नाम पर इन्ही चीजों तक बाँध कर रखे | हर बच्चे में किसी-न-किसी क्षेत्र की प्रतिभा होती है | जरुरत है उसे पहचानने और प्रोत्साहित करने की |

यह जानी हुई बात है की शिशु अपने गर्भ के दिनों से ही सीखना शुरू कर देता है  | अतः गर्भावस्था में बच्चे के लिए खुशनुमा और सृजनात्मक माहौल देना काफी जरुरी है | जन्म के बाद माँ की लोरी भी बच्चे के लिए खुशियों की सौगात की तरह होती है | छोटों बच्चों को प्यार-दुलार करना, उनके साथ उनके संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्पर्श, दृश्य, श्रव्य अर्थात उनकी सभी  ज्ञानेन्द्रियों को भागीदार बनाने वाले खेल खेलना, उनसे बाते करना, ये सभी बच्चों के व्यक्तित्व विकास में अहम् भूमिका अदा करते हैं |

जिज्ञासा बच्चों की स्वाभाव होता है और यह उनकी रचनात्मकता की स्वाभाविक निशानी है | बच्चों की जिज्ञासा को कभी भी दबाये नहीं बल्कि इसे उनकी सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाए |

भाषा में भी बच्चों की कल्पना शक्ति को उड़ान भरने दे | बच्चों की चित्रकथा की रोचक और ज्ञानवर्धक किताबें पढने दे | इससे उनकी भाषा और सृजन दोनों का भला होगा | बच्चा जितनी भी भाषाएँ जानता है, उन सबमे उसे बाल साहित्य पढने को प्रोत्साहित करे | मातृभाषा या बोली पर प्राधान्य देना उचित रहेगा |

दादी- नानी की कहानियों का समय अब के एकल परिवारों में नही रहा | अगर वह जिम्मेदारी माता या पिता उठाये तो बच्चे के मानसिक विकास के लिए उससे उत्तम  कुछ नहीं | आपका किस्सागो होना अनिवार्य नहीं है, अपने हर दिन के अनुभव को ही बच्चों की रोचक कहानी में ढाला जा सकता है | बच्चों की भी टूटी-फूटी ही सही, अपनी कहानी बनाने और सुनाने का अवसर दे |

चित्रकला बच्चों के लिए सहज स्वाभाव की तरह आती है | हर बच्चे को आप लगभग दो-तीन साल की उम्र से चित्र, रेखाएं  आंकने में अपना हाथ आजमाते देख सकते है | यहाँ भी बच्चों की तरह- तरह के प्रयोग की छूट देकर और उनका मार्गदर्शन करके आप उनकी प्रतिभा को निखार सकते हैं | हर बच्चा चित्रकार नही बन जाता पर यह भी उतना ही सही है की उम्र के किसी भी मोड़ पर भी हर किसी को अच्छा-बुरा जैसे भी बने, चित्र बनाने का प्रयास करना अच्छा लगता है |

खिलौनें भी बच्चों की जिज्ञासा को जगाने में प्रेरक का काम करते हैं | महंगे और ख़रीदे खिलौनों की जगह बच्चों को घर में ही उपलब्ध चीजों से खिलौनें बनाने को प्रोत्साहित करें | यह उनकी सृजन क्षमता को निखारेगा |

बच्चों को सृजनात्मक बनानें के लिए बड़ी-बड़ी चीजों की जरुरत नहीं | चाहिए तो बस आपका प्यार-दुलार और हर काम को  और सृजनात्मक सुंदर तरीके से कर सकने का दृष्टिकोण |  सृजनात्मकता हर बार कुछ नया करना ही  नहीं है, बल्कि हर बात को नए तरीके से करना भी सृजनात्मकता है | बच्चों में ये नजरिया आ गया तो फिर वो खुश भी रहेंगे और दुनिया में बांटेंगे अपने सृजन की सुगंध |


Thursday, July 1, 2010

धडकनों का इंस्पेक्शन

तेरी यादें जब भी दिल के गलियारे से गुजरती हैं




धडकनें थोड़ी टेंशन में, खड़ी अटेंशन में



उसको देख कर बजाती है



एक कड़क-सा सैल्यूट.







तुम्हारी यादें



धडकनों का इंस्पेक्शन करती हैं



चेक करती हैं कि धडकनों कि वफादारी



किसी और के लिए तो नही..



धड़कने किसी और के लिए तो नही



धड़कती हैं..







और फिर एक गर्व भरी टेढ़ी-सी



मुस्कान लिए अपने चेहरे पर



दिल के गलियारों से आगे बढ़ लेती है.







धडकनों को तो ये भी पूछने का हक नही



कि तेरी यादें किसी और की धडकनों की



सलामी तो नही लेती....?

सुहानी शाम संगीत के नाम

जुलाई के महीने की सुरीली शुरुआत 2008 बैच के ias अधिकारीयों ने बड़े ही धूम-धाम से की. नीरज और ललिता की जोड़ी ने सुरों का जो समां बांधा वो हर किसी का मन मोह गया. उनके गाने सुनते हुए मन रोमांस की वादियों में खोया सा बच्चा बना हुआ था. पूनम ने भी दो अच्छे गाने गए. उदित ने मानों सारे लोगों की व्यथा को "Give me some sunshine" गाने में बड़ी ही मोहक अदा से उकेरा. वाकई में हम लोग भी सारी बंदिशों से मुक्त हो जीवन को अपनी शर्तों पर जीना चाहते हैं, मस्ती से जीना चाहते हैं. सीनिअर लोगों ने भी जलवे दिखाते हुए कुछ काफी अच्छे गाने पेश किये. मैडम द्वारा प्रस्तुत किया गया बुन्देलखंडी गाना- "मैं तो चंदा जैसे नार, पिया तुम क्यूँ लाये सौतनियाँ?" पर लोगों खासकर नए-नए शादी-शुदा लोगों ने जम कर तालियाँ पीटी.



किरण गोपाल ने अमीर खुसरो की प्रसिद्ध fusion ग़ज़ल जिसमे फारसी, उर्दू और ब्रजभाषा का मिश्रित प्रयोग है, जम कर वाह-वाही बटोरी. चन्द्रकला की बेटी कीर्ति ने सुनिधि के गाने को काफी आत्मविश्वास और सुरीली आवाज में गाकर लोगों का मन मोह लिया. नन्हे-मुन्नों ने अपने गायन और नृत्य का जलवा बिखेरा. एम्फीथियेटर में बैठे साथी आपस में कनफुसकियाँ और दबी-छुपी खिलखिलाहटों का सिलसिला भी चलाते रहे. समारोह का अंत विवेक और नीरज ने "आने वाला पल जाने वाला है" गाने से किया. पूरे कार्यक्रम में अपने शानदार मंच सञ्चालन और सटीक शेरों-शायरी से पवन भाई ने जम कर तालियाँ बटोरी और कार्यक्रम में चार चाँद लगा दिए. फैकैल्टी के ढेर सारे लोगों की उपस्तिथि भी हम लोगों के लिए काफी प्रेरणास्पद थी.



वाकई, कई दिनों की बोरिंग लाइफ के बाद आज की मस्ती ने इस जुलाई का मस्त आगाज किया है, बस दोस्तों के साथ के इस पल को इसी तरह हमेशा हम लोग एन्जॉय करते रहे, यही दुआ है. आमीन!