अभी की दुनिया आपाधापी की दुनिया है | हर माता- पिता अपने बच्चों को करियर पर फोकस करने को, प्राथमिकता देने को कहते है | ऐसे में बच्चों की स्वतंत्र विचार शक्ति और रचनात्मकता पर बुरा असर पड़ता है |
इन दोनों बातों के बीच में संतुलन बनाने की जरुरत है |
समाज भी सृजनात्मकता की कुछ ही विधाओं को सम्मान और मान्यता देता है जैसे गायन, लेखन, चित्रकारी, संगीत, नृत्य, दर्शन इत्यादि | इसका यह मतलब नहीं की आप भी अपने बच्चों को सृजन के नाम पर इन्ही चीजों तक बाँध कर रखे | हर बच्चे में किसी-न-किसी क्षेत्र की प्रतिभा होती है | जरुरत है उसे पहचानने और प्रोत्साहित करने की |
यह जानी हुई बात है की शिशु अपने गर्भ के दिनों से ही सीखना शुरू कर देता है | अतः गर्भावस्था में बच्चे के लिए खुशनुमा और सृजनात्मक माहौल देना काफी जरुरी है | जन्म के बाद माँ की लोरी भी बच्चे के लिए खुशियों की सौगात की तरह होती है | छोटों बच्चों को प्यार-दुलार करना, उनके साथ उनके संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्पर्श, दृश्य, श्रव्य अर्थात उनकी सभी ज्ञानेन्द्रियों को भागीदार बनाने वाले खेल खेलना, उनसे बाते करना, ये सभी बच्चों के व्यक्तित्व विकास में अहम् भूमिका अदा करते हैं |
जिज्ञासा बच्चों की स्वाभाव होता है और यह उनकी रचनात्मकता की स्वाभाविक निशानी है | बच्चों की जिज्ञासा को कभी भी दबाये नहीं बल्कि इसे उनकी सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाए |
भाषा में भी बच्चों की कल्पना शक्ति को उड़ान भरने दे | बच्चों की चित्रकथा की रोचक और ज्ञानवर्धक किताबें पढने दे | इससे उनकी भाषा और सृजन दोनों का भला होगा | बच्चा जितनी भी भाषाएँ जानता है, उन सबमे उसे बाल साहित्य पढने को प्रोत्साहित करे | मातृभाषा या बोली पर प्राधान्य देना उचित रहेगा |
दादी- नानी की कहानियों का समय अब के एकल परिवारों में नही रहा | अगर वह जिम्मेदारी माता या पिता उठाये तो बच्चे के मानसिक विकास के लिए उससे उत्तम कुछ नहीं | आपका किस्सागो होना अनिवार्य नहीं है, अपने हर दिन के अनुभव को ही बच्चों की रोचक कहानी में ढाला जा सकता है | बच्चों की भी टूटी-फूटी ही सही, अपनी कहानी बनाने और सुनाने का अवसर दे |
चित्रकला बच्चों के लिए सहज स्वाभाव की तरह आती है | हर बच्चे को आप लगभग दो-तीन साल की उम्र से चित्र, रेखाएं आंकने में अपना हाथ आजमाते देख सकते है | यहाँ भी बच्चों की तरह- तरह के प्रयोग की छूट देकर और उनका मार्गदर्शन करके आप उनकी प्रतिभा को निखार सकते हैं | हर बच्चा चित्रकार नही बन जाता पर यह भी उतना ही सही है की उम्र के किसी भी मोड़ पर भी हर किसी को अच्छा-बुरा जैसे भी बने, चित्र बनाने का प्रयास करना अच्छा लगता है |
खिलौनें भी बच्चों की जिज्ञासा को जगाने में प्रेरक का काम करते हैं | महंगे और ख़रीदे खिलौनों की जगह बच्चों को घर में ही उपलब्ध चीजों से खिलौनें बनाने को प्रोत्साहित करें | यह उनकी सृजन क्षमता को निखारेगा |
बच्चों को सृजनात्मक बनानें के लिए बड़ी-बड़ी चीजों की जरुरत नहीं | चाहिए तो बस आपका प्यार-दुलार और हर काम को और सृजनात्मक सुंदर तरीके से कर सकने का दृष्टिकोण | सृजनात्मकता हर बार कुछ नया करना ही नहीं है, बल्कि हर बात को नए तरीके से करना भी सृजनात्मकता है | बच्चों में ये नजरिया आ गया तो फिर वो खुश भी रहेंगे और दुनिया में बांटेंगे अपने सृजन की सुगंध |
इन दोनों बातों के बीच में संतुलन बनाने की जरुरत है |
समाज भी सृजनात्मकता की कुछ ही विधाओं को सम्मान और मान्यता देता है जैसे गायन, लेखन, चित्रकारी, संगीत, नृत्य, दर्शन इत्यादि | इसका यह मतलब नहीं की आप भी अपने बच्चों को सृजन के नाम पर इन्ही चीजों तक बाँध कर रखे | हर बच्चे में किसी-न-किसी क्षेत्र की प्रतिभा होती है | जरुरत है उसे पहचानने और प्रोत्साहित करने की |
यह जानी हुई बात है की शिशु अपने गर्भ के दिनों से ही सीखना शुरू कर देता है | अतः गर्भावस्था में बच्चे के लिए खुशनुमा और सृजनात्मक माहौल देना काफी जरुरी है | जन्म के बाद माँ की लोरी भी बच्चे के लिए खुशियों की सौगात की तरह होती है | छोटों बच्चों को प्यार-दुलार करना, उनके साथ उनके संज्ञानात्मक विकास को बढ़ावा देने के लिए स्पर्श, दृश्य, श्रव्य अर्थात उनकी सभी ज्ञानेन्द्रियों को भागीदार बनाने वाले खेल खेलना, उनसे बाते करना, ये सभी बच्चों के व्यक्तित्व विकास में अहम् भूमिका अदा करते हैं |
जिज्ञासा बच्चों की स्वाभाव होता है और यह उनकी रचनात्मकता की स्वाभाविक निशानी है | बच्चों की जिज्ञासा को कभी भी दबाये नहीं बल्कि इसे उनकी सीखने की प्रक्रिया का हिस्सा बनाए |
भाषा में भी बच्चों की कल्पना शक्ति को उड़ान भरने दे | बच्चों की चित्रकथा की रोचक और ज्ञानवर्धक किताबें पढने दे | इससे उनकी भाषा और सृजन दोनों का भला होगा | बच्चा जितनी भी भाषाएँ जानता है, उन सबमे उसे बाल साहित्य पढने को प्रोत्साहित करे | मातृभाषा या बोली पर प्राधान्य देना उचित रहेगा |
दादी- नानी की कहानियों का समय अब के एकल परिवारों में नही रहा | अगर वह जिम्मेदारी माता या पिता उठाये तो बच्चे के मानसिक विकास के लिए उससे उत्तम कुछ नहीं | आपका किस्सागो होना अनिवार्य नहीं है, अपने हर दिन के अनुभव को ही बच्चों की रोचक कहानी में ढाला जा सकता है | बच्चों की भी टूटी-फूटी ही सही, अपनी कहानी बनाने और सुनाने का अवसर दे |
चित्रकला बच्चों के लिए सहज स्वाभाव की तरह आती है | हर बच्चे को आप लगभग दो-तीन साल की उम्र से चित्र, रेखाएं आंकने में अपना हाथ आजमाते देख सकते है | यहाँ भी बच्चों की तरह- तरह के प्रयोग की छूट देकर और उनका मार्गदर्शन करके आप उनकी प्रतिभा को निखार सकते हैं | हर बच्चा चित्रकार नही बन जाता पर यह भी उतना ही सही है की उम्र के किसी भी मोड़ पर भी हर किसी को अच्छा-बुरा जैसे भी बने, चित्र बनाने का प्रयास करना अच्छा लगता है |
खिलौनें भी बच्चों की जिज्ञासा को जगाने में प्रेरक का काम करते हैं | महंगे और ख़रीदे खिलौनों की जगह बच्चों को घर में ही उपलब्ध चीजों से खिलौनें बनाने को प्रोत्साहित करें | यह उनकी सृजन क्षमता को निखारेगा |
बच्चों को सृजनात्मक बनानें के लिए बड़ी-बड़ी चीजों की जरुरत नहीं | चाहिए तो बस आपका प्यार-दुलार और हर काम को और सृजनात्मक सुंदर तरीके से कर सकने का दृष्टिकोण | सृजनात्मकता हर बार कुछ नया करना ही नहीं है, बल्कि हर बात को नए तरीके से करना भी सृजनात्मकता है | बच्चों में ये नजरिया आ गया तो फिर वो खुश भी रहेंगे और दुनिया में बांटेंगे अपने सृजन की सुगंध |